रघुवर सरकार की जनविरोधी स्थानीयता नीति अब भी लागू है, और छह साल की हेमंत सरकार के बावजूद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। नियोजन नीति की अस्पष्टता ने भर्ती प्रक्रिया को जटिल और भेदभावपूर्ण बना दिया है। इसका ताज़ा उदाहरण पलामू, लातेहार और खूंटी जिलों में चौकीदार बहाली है, जहाँ अनुसूचित जाति के लिए एक भी सीट आरक्षित नहीं की गई, जो संवैधानिक आरक्षण नीति की स्पष्ट अवहेलना है। पलामू में 2017 से कार्यरत 251 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का सेवा विस्तार समाप्त कर उन्हें स्थायी नियुक्ति न देना भी सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निकाली गई विज्ञापन संख्या 1/2025 को स्थानीय नियमावली का हवाला देकर प्रभावहीन कर दिया गया, जिससे 35,000 से अधिक अभ्यर्थियों के साथ धोखा हुआ, जो वर्षों से चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए संघर्ष कर रहे थे। JSSC के RTI के अनुसार, 60% से अधिक सरकारी और निजी नौकरियों में बाहरी लोगों का दबदबा है। भूमिहीन दलित युवा आज भी जमीन और जाति प्रमाण पत्र के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
JSSC-CGL की जनवरी और सितंबर 2024 की परीक्षाएं पेपर लीक के कारण रद्द हुईं, और हाई कोर्ट में CBI जांच की मांग के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उत्पाद सिपाही भर्ती में नियमावली बदलने के कारण प्रक्रिया ठप हो गई, और इस दौरान 12 अभ्यर्थियों की असमय मृत्यु हो गई। इसी तरह, झारखंड सिपाही प्रतियोगिता परीक्षा-2023 के 4,919 पदों के लिए जारी विज्ञापन भी वापस ले लिया गया, जिससे हजारों उम्मीदवारों की मेहनत बेकार चली गई। नियोजन नीति की अस्पष्टता और परीक्षाओं की असफलता ने युवाओं का सरकार और व्यवस्था से विश्वास छीन लिया है।
राज्य में बेरोजगारी और पलायन की स्थिति गंभीर है। बेरोजगारी दर 17% से अधिक हो चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना ज्यादा है। हर साल लाखों झारखंडी युवा रोज़गार की तलाश में दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब और केरल जैसे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। प्रवासी श्रमिक सेल के अनुसार, प्रवासी श्रमिकों की संख्या 10 लाख से अधिक है। पलायन करने वाले युवाओं को गंतव्य स्थानों पर शोषण, भेदभाव, अमानवीय कार्य परिस्थितियों, कम वेतन और पहचान के संकट जैसे गंभीर सामाजिक अन्यायों का सामना करना पड़ता है।
शिक्षा की स्थिति भी दयनीय है। UDISE+ के अनुसार, राज्य के 7,900 से अधिक प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में केवल एक शिक्षक है, जहाँ 3.8 लाख बच्चे पढ़ते हैं। 17,850 शिक्षक पद और 1.58 लाख से अधिक कुल सरकारी पद खाली पड़े हैं, लेकिन बहाली नहीं हो रही। उच्च शिक्षा प्रणाली भी संकट में है। रांची विश्वविद्यालय सहित अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में 2008 के बाद कोई नियमित फैकल्टी नियुक्ति नहीं हुई। 4,000 से अधिक शिक्षक और कर्मचारी पद खाली हैं। SC/ST/OBC वर्गों के आरक्षित पद लंबे समय से रिक्त हैं, और प्रमोशन नीति भी अधर में है। निजी कंपनियों में केवल 21% रोज़गार झारखंडियों को मिल रहा है, जो स्वीकार्य नहीं है। सरकार ने 40,000 रुपये प्रतिमाह से कम वेतन वाली नौकरियों में 75% आरक्षण झारखंडियों के लिए अनिवार्य किया, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़े स्कूल, शिक्षकों की कमी और स्थानीय भाषा-आधारित शिक्षा की उपेक्षा नई पीढ़ी के लिए खतरे का संकेत है।
इन समस्याओं के खिलाफ झारखंड जनाधिकार महासभा ने 5 अगस्त 2025 को विधानसभा के पीछे विशाल धरने का आह्वान किया है। छह जिलों से आए छात्र-युवा प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि यह धरना केवल विरोध नहीं, बल्कि सरकार को चेतावनी है। यदि नियोजन नीति, स्थानीय आरक्षण, शिक्षा सुधार, और महिला व पिछड़े वर्गों को अवसर देने जैसे मुद्दों पर ठोस निर्णय नहीं हुआ, तो यह आंदोलन और व्यापक होगा। यह केवल रोज़गार की नहीं, बल्कि झारखंड की पहचान, सम्मान और अधिकार की लड़ाई है।
महासभा की प्रमुख मांगें:
- रघुवर सरकार की स्थानीयता नीति रद्द कर मूल गांव आधारित नीति लागू की जाए।
- स्थायी और विवादमुक्त नियोजन नीति बनाई जाए।
- सभी रिक्त पदों पर स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए।
- अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्गों और महिलाओं के लिए बढ़ा हुआ आरक्षण लागू हो।
- भूमिहीन दलितों को जाति प्रमाण पत्र और जमीन देने की प्रक्रिया सरल की जाए, और इसके लिए शिविर आयोजित किए जाएं।
- पलायन रोकने के लिए कौशल विकास, सामाजिक सुरक्षा और मज़दूर अधिकारों पर ठोस नीति बनाई जाए।
- शोध और उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थानीय युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष नीतियां लागू हों।
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