केरल मॉडल अपनाने और बोन मैरो ट्रांसप्लांट हेतु विशेष योजना लागू करने पर जोर
रांची : झारखंड में थेलिसिमिया पीड़ित बच्चों के लिए राज्य स्तरीय स्वास्थ्य नीति बनाए जाने की मांग तेज हो गई है। रांची में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में थेलिसिमिया पीड़ित बच्चों और उनके परिजनों से संवाद करते हुए कॉमरेड प्रकाश विप्लव ने कहा कि यह केवल स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं, बल्कि बच्चों के सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार से जुड़ा सवाल है।
कार्यक्रम के दौरान छोटे–छोटे बच्चों की पीड़ा और संघर्ष सामने आया, जिनमें कुछ बच्चों का जन्मदिन भी इसी दिन पड़ा था। परिजनों ने बताया कि आजीवन चलने वाले उपचार और बार-बार रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया ने परिवारों को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर कर दिया है। इस अवसर पर सभी समुदायों की भागीदारी ने यह संदेश दिया कि नफरत और विभाजन के दौर में भी इंसानियत और अधिकारों की लड़ाई जारी है।
कॉमरेड प्रकाश विप्लव ने कहा कि झारखंड में थेलिसिमिया, सिकल सेल एनीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया एवं बोन मैरो से जुड़ी गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों की वास्तविक संख्या का कोई समग्र और आधिकारिक आंकड़ा आज तक राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। हजारों बच्चे, शिशु और किशोर थेलिसिमिया जैसी अत्यंत खर्चीली और आजीवन बीमारी से जूझ रहे हैं, लेकिन उनके लिए अब तक कोई ठोस और दीर्घकालिक स्वास्थ्य नीति नहीं बनाई गई है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में संपन्न झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस विधायक दल के नेता श्री प्रदीप यादव ने झारखंड थेलिसिमिया सोसाइटी एवं लहू बोलेगा संगठन की पहल पर इस गंभीर जनस्वास्थ्य मुद्दे को सदन में प्रभावी ढंग से उठाया था। इससे पूर्व विधायक श्री अरुप चटर्जी भी विधानसभा में यह प्रश्न उठा चुके हैं।
लगातार जनदबाव और विधानसभा में उठे सवालों के बाद राज्य सरकार द्वारा थेलिसिमिया मरीजों को सरकारी ब्लड बैंक से रक्त उपलब्ध कराने का निर्णय एक सकारात्मक कदम बताया गया, लेकिन वक्ताओं ने इसे केवल प्रारंभिक राहत करार दिया। उन्होंने कहा कि आज भी राज्य में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, न ही आर्थिक सहायता का कोई स्थायी प्रावधान मौजूद है और स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत कोई समर्पित विशेषज्ञ सेल गठित किया गया है।
इस संदर्भ में केरल की वाम–जनवादी मोर्चा (LDF) सरकार द्वारा संचालित “थालोलम योजना” का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह झारखंड के लिए एक अनुकरणीय मॉडल हो सकता है। केरल सरकार ने थेलिसिमिया, सिकल सेल एनीमिया और एप्लास्टिक एनीमिया के मरीजों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय में अलग BMT सेल का गठन किया है, थेलिसिमिया पीड़ितों को ₹2000 प्रतिमाह की आर्थिक सहायता दी जा रही है तथा देश के किसी भी चिन्हित बड़े अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए ₹10 लाख तक की सरकारी सहायता का प्रावधान किया गया है।
कार्यक्रम के दौरान राज्य सरकार से मांग की गई कि स्वास्थ्य मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय टीम, जिसमें झारखंड थेलिसिमिया सोसाइटी के प्रतिनिधि भी शामिल हों, को केरल भेजकर वहां की कार्ययोजना का अध्ययन कराया जाए और उसी तर्ज पर झारखंड में राज्य स्तरीय नीति लागू की जाए।
बताया गया कि आगामी 10–11 जनवरी को हैदराबाद में एशियन सोसाइटी फॉर थेलिसिमिया एंड सिकल सेल का कन्क्लेव आयोजित होने जा रहा है। इस कन्क्लेव में झारखंड से संबंधित संगठनों और विशेषज्ञों की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी मांग उठाई गई।
कार्यक्रम के अंत में वक्ताओं ने कहा कि स्वास्थ्य कोई दया नहीं, बल्कि नागरिकों का मौलिक अधिकार है, और राज्य सरकार को थेलिसिमिया सहित अन्य गंभीर रक्त रोगों के लिए तत्काल एक समग्र, मानवीय और न्यायसंगत नीति बनानी चाहिए।
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