राँची :: झारखंड के 10+2 विद्यालयों में इंटरमीडिएट परीक्षा फ़ॉर्म भरने के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति को अनिवार्य किए जाने के फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने विरोध दर्ज कराया है। इसी क्रम में आइसा के प्रतिनिधियों ने एस.एस. डोरंडा +2 गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाध्यापिका एवं शिक्षिकाओं से मुलाकात कर इस निर्णय के छात्र-विरोधी प्रभावों पर चर्चा की और छात्रों के हित में समर्थन देने की अपील की।
मुलाकात के दौरान विद्यालय की वास्तविक शैक्षणिक स्थिति सामने आई। आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष इंटर कला संकाय में लगभग 150 छात्राओं का नामांकन है, जिनमें से केवल करीब 40 प्रतिशत छात्राएं ही 75 प्रतिशत उपस्थिति की शर्त पूरी कर पा रही हैं। ऐसे में यदि झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक बोर्ड) या जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) द्वारा कोई स्पष्ट और राहतपूर्ण निर्देश जारी नहीं किया गया, तो 50 प्रतिशत से अधिक छात्राएं परीक्षा से वंचित हो सकती हैं।
आइसा झारखंड राज्य सह-सचिव सह रांची जिला सचिव संजना मेहता ने कहा कि नियमित उपस्थिति की शर्त तभी न्यायसंगत हो सकती है, जब विद्यालयों में शिक्षकों के सभी सृजित पद भरे हों और पर्याप्त शैक्षणिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। उन्होंने बताया कि पूरे झारखंड के 10+2 विद्यालयों में सृजित शिक्षकीय पदों का लगभग 65 प्रतिशत आज भी रिक्त है। इसके साथ ही विद्यालयों की संख्या और दूरी का असंतुलन एक गंभीर समस्या बना हुआ है, जिसके कारण कई छात्रों को 40–50 किलोमीटर दूर से विद्यालय आना पड़ता है। यातायात सुविधाओं की कमी, आर्थिक तंगी, खेती एवं अन्य आजीविका संबंधी मजबूरियां तथा स्वास्थ्य समस्याएं भी छात्रों की उपस्थिति को प्रभावित कर रही हैं।
विद्यालय भ्रमण के दौरान की स्थिति का उल्लेख करते हुए आइसा राज्य उपाध्यक्ष सह जिला अध्यक्ष विजय कुमार ने कहा कि कक्षा समय में शिक्षकों को बीएलओ के रूप में मतदाता सर्वेक्षण जैसे गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाए जाने से पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार एक ओर शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में उलझाए रखती है और दूसरी ओर, जहां पढ़ाने के लिए सृजित लगभग 25 प्रतिशत शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है, वहां छात्रों पर 75 प्रतिशत उपस्थिति जैसी कठोर शर्त थोप रही है, जो पूरी तरह अन्यायपूर्ण है।
इस अवसर पर भाकपा (माले) नेता जफर अंसारी ने कहा कि इन सभी वास्तविकताओं से शिक्षा विभाग, जैक बोर्ड और सरकार भली-भांति अवगत हैं। इसके बावजूद समस्याओं का स्थायी समाधान किए बिना छात्रों को परीक्षा से वंचित करना शिक्षा-विरोधी नीतियों को उजागर करता है। आइसा ने मांग की कि परीक्षा में शामिल होने के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति की बाध्यता को तत्काल समाप्त किया जाए और व्यावहारिक व वैकल्पिक समाधान अपनाए जाएं। उन्होंने कहा कि परीक्षा से वंचित करने से न तो शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ती है और न ही व्यवस्था सुदृढ़ होती है, बल्कि बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।
कार्यक्रम के दौरान सोनाली केवट सहित विद्यालय की छात्राएं, शिक्षिकाएं एवं प्रधानाध्यापिका उपस्थित थीं।
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