चतरा के दलित परिवारों को वन अधिकार पट्टा देने की मांग, मुख्यमंत्री को सौंपा गया ज्ञापन
राँची/चतरा :: चतरा जिला अंतर्गत हंटरगंज, प्रतापपुर, कुंदा एवं चतरा प्रखंडों में वन भूमि पर पीढ़ियों से निवास कर रहे दलित समुदाय के सैकड़ों परिवारों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत व्यक्तिगत वन अधिकार (पट्टा) प्रदान किए जाने की मांग को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
सीपीआई(एम) की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद कॉमरेड बृंदा करात तथा पार्टी के राज्य सचिव कॉमरेड प्रकाश विप्लव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन के आवास पर पहुंचकर इस संबंध में एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल ने पट्टा प्रक्रिया में हो रही देरी पर गंभीर चिंता जताते हुए दमनात्मक कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाने की मांग की।
ज्ञापन में कहा गया कि संबंधित क्षेत्रों में बसे दलित परिवार दशकों से उक्त भूमि पर खेती कर जीवनयापन कर रहे हैं तथा वहीं उनके आवास भी स्थापित हैं। राज्य सरकार द्वारा वहां सरकारी विद्यालयों की स्थापना, अबुआ आवास योजना के तहत आवास निर्माण, पेयजल हेतु हैंडपंप, विद्युत कनेक्शन और सिंचाई के लिए सरकारी आहरों का निर्माण इस बात का प्रमाण है कि ये बस्तियां लंबे समय से अस्तित्व में हैं। इसके बावजूद वन विभाग द्वारा ग्रामीणों को अवैध अतिक्रमणकारी बताकर बेदखली, मुकदमे और गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई की जा रही है।
प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि सैकड़ों ग्रामीणों को जेल भेजा जा चुका है तथा अनेक मामले न्यायालयों में लंबित हैं, जिससे दलित गरीब परिवारों में भय और असुरक्षा का माहौल व्याप्त है।
•प्रमुख मांगें
सीपीआई(एम) प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री के समक्ष स्पष्ट रूप से मांग रखी कि—
• सभी पात्र दलित परिवारों को तत्काल व्यक्तिगत वन अधिकार (पट्टा) प्रदान किया जाए।
• पट्टा प्रक्रिया पूरी होने तक बेदखली, गिरफ्तारी एवं मुकदमेबाजी पर अविलंब रोक लगाई जाए।
•वन विभाग द्वारा दर्ज सभी लंबित मामलों का समयबद्ध निष्पादन सुनिश्चित किया जाए।
•ग्राम सभाओं की अनुशंसाओं पर अंचल एवं जिला स्तर पर शीघ्र कार्रवाई की जाए।
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को समाप्त करना है, किंतु व्यवहार में दलित जैसे वंचित समुदाय आज भी अपने वैधानिक अधिकारों से वंचित हैं। यह स्थिति सामाजिक न्याय एवं संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है।
मुख्यमंत्री से अपेक्षा व्यक्त की गई कि राज्य सरकार दलित गरीब किसानों के अधिकारों की रक्षा करते हुए वन विभाग की दमनकारी कार्रवाई पर रोक लगाएगी तथा इस मामले में शीघ्र न्यायपूर्ण निर्णय लेगी।
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