- सुशीला कुमारी
बरसात गर्मी से झुलसते लोगों के लिए राहत लाती है, लेकिन यह अपने साथ अनेक रोगों को भी लाती है। बरसात में होने वाले ज्यादातर रोग गंदे पानी और प्रदूषित भोजन से ही फैलते हैं इसलिए इस मौसम में पानी और भोजन की शुद्धता पर विशेष ध्यान देना जरूरी है।
बरसात शुरू होते ही खाद्य विषाक्तता के कारण अमीबा - पेचिश होने का खतरा बढ़ जाता है। यह पेचिश एन्टामीबा हिस्टोलिटिका नामक एक सूक्ष्म जीव के संक्रमण से होता है। अमीबा पेचिश होने का मुख्य कारण पेय जल में गन्दे पानी का मिलना है। पेय जल की आपूर्ति करने वाले पाइपों में मामूली दरार पड़ने से भी वर्षा और नालियों के गंदे पानी पेय जल में घुल- मिल जाते हैं जिससे पेय जल दूषित हो जाता है और अमीबा पेचिश का कारण बनता है।
बरसात के मौसम में पानी के अशुद्ध होने तथा उसमें जीवाणुओं के पनपने की आशंका को देखते हुए नगरों की नगरपालिकायें पेय जल को क्लोरीन से शुद्ध करती है। फिर भी इससे ज्यादा लाभ नहीं होता, क्योंकि अमीबा सिस्ट का निर्माण करता है जिस पर क्लोरीन का कोई असर नहीं पड़ता और पानी को दस मिनट तक उबालकर और उसे 'फिल्टर' से छानकर ही पीना चाहिए।
पानी छानने के लिए फिल्टर का उपयोग करते समय कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे- कैंडल को वासर द्वारा अच्छी तरह से फिट करना चाहिए ताकि पानी कैंडल से गुजरने के बाद ही नीचे के बर्तन में जाय और पानी में सूक्ष्म जीव न रहने पाये। कैंडल को हर हफ्ते मुलायम ब्रश से रगड़कर बहते पानी में डिटर्जेन्ट से साफ करना चाहिए और उसे दस मिनट तक पानी में उबालना चाहिए।
अधिकतर लोग कैंडल की सफाई पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन फिल्टर के ऊपरी तथा निचले बर्तनों तथा बोतलों की सफाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं, जिससे पानी को फिल्टर से छानने के बावजूद बोतल में रखने पर उसमें जीवाणु और विषाणु पनपने लगते हैं। इसलिए जरूरी है कि फिल्टर के केंडलों के साथ-साथ फिल्टर के बर्तनों और बोतलों की भी समय-समय पर गर्म पानी से सफाई की जाए। चूंकि फिल्टर से हिपाटिटिस ए किस्म के विषाणु छन नहीं पाते हैं, इसलिए पानी को उबालकर ही फिल्टर में छनने के लिए डालना चाहिए।
पानी शुद्ध करने का सबसे बेहतर उपाय पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) विकिरण है, हालांकि यह उपाय बहुत महंगा है। इस विकिरण से पानी को कम से कम पांच सेकण्ड तक शुद्ध करना चाहिए। पानी निकालने से पहले इस क्रिया को दुहरा लेना बेहतर होता है। पानी को इस क्रिया से शुद्ध करने के बाद जीवाणुहीन बोतलों में ही रखना चाहिए।
जब अल्ट्रावायलट फिल्टर को कार्बन फिल्टर के साथ फिट किया जाता है तो इसे फिल्टर के साथ फिट किया जाता है तो इसे समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। वोल्टेज का उतार-चढ़ाव अल्ट्रावायलट लैंप को हानि पहुंचा सकता है इसलिए स्टैवलाइजर का प्रयोग करना चाहिए।
पानी शुद्ध करने का एक और उपाय 'जीरो बी' फिल्टर है, जो जीवाणुओं को मारने में सक्षम है। इस फिल्टर में फिल्टर पैड आयोडीनयुक्त होते हैं, जिससे जीवाणु पैड आयोडीनयुक्त होते हैं, जिससे जीवाणु मर जाते हैं। लेकिन अल्ट्रावायलट विकिरण की ही तरह यह जीवाणु के स्पोर को नहीं मार पाता है जिससे छने हुए पानी को अधिक समय तक जमा रखने पर इसमें जीवाणु पनपने लगते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि फिल्टर के चैंबर से पानी लगातार निकालते रहना चाहिए और इस पानी का अधिक दिनों तक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
गांवों में पाइपों से पानी की आपूर्ति नहीं होती। वहां लोग पेय जल के लिए कुओं पर ही निर्भर रहते हैं। अक्सर गंदे पानी की खुली नालियां कुओं के पास गुजरती होता है। गांवों में रोगों से बचाव के लिए हैं, इसलिए गांवों में रोगों का खतरा अधिक कुओं का ढका होना जरूरी है। साथ ही कुओं की मेहराबें जमीन से अधिक ऊंचाई पर हों और कुओं के चारों तरफ जमीन ढालू हो जिससे पानी कुएं के पास इकट्ठा न होने पाए। कुएं के पास की गंदे पानी की नालियां भी ढकी होनी चाहिए। हालांकि कुएं के पानी अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध होते हैं, क्योंकि कुएं में बालू फिल्टर का कार्य करते हैं। फिर भी कुएं के पानी को उबालकर पीना जरूरी है। अमीबा पेचिश फलों और सब्जियों से भी फैल सकता है। इसलिए फलों और सब्जियों को रखने से पहले उसके खराब भागों को निकालकर फलों और सब्जियों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लेनी चाहिए। फलों और सब्जियों को संक्रमण से मुक्त करने का एक दूसरा उपाय यह है कि सब्जियों की इस्तेमाल से पहले पानी में पोटेशियम परमैंगनेट घोलकर उसमें एक घंटे तक रखना चाहिए। पोटेशियम परमैंगनेट दवा की दुकान पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। पत्तेदार सब्जियों को भी इस विधि से जीवाणुमुक्त किया जा सकता है।
बरसात के दिनों में पेट की मामूली शिकायत होने पर भी दस्त की जांच अवश्य कराना चाहिए और एन्यमीबा हिस्टोलिटिका की पुष्टि होने पर तुरंत चिकित्सा शुरू कर देनी चाहिए। आरंभिक अवस्था में इस पर नियंत्रण पाना आसान होता है, लेकिन बीमारी के गंभीर रूप ले लेने पर ऊतक संक्रमित हो जाते हैं, जिससे फोड़े बनते हैं।
बरसात के मौसम में ठेले पर बिकने वाले आलू की टिक्की, समोसे और मसालेदार चटनी से भी दूर रहना चाहिए। साथ ही बाजार में बिकने वाला ठंडा पानी और फलों के रस आदि भी नहीं पीना चाहिए ।
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