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प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन की मदद से बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (बीपीएच) का इलाज बिना सर्जरी के

हाल ही में नौएडा के जेपी अस्पताल में डॉक्टर सी.पी.एस. चौहान ने प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन द्वारा बढे हुए प्रोस्टेट का इलाज किया। मरीज़ अब सभी लक्षणों से मुक्त सामान्य ज़िन्दगी जी रहा है। 
दरअसल बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (बीपीएच) जिसे प्रोस्टेट एनलार्जमेंट भी कहते हैं, यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें पुरुषों के प्रोस्टेट का आकार बढ़ जाता है हालांकि यह नॉन कैंसरस होता है। इसमें लगातार पेशाब आना, पेशाब करते समय तकलीफ होना, परेशानी होना, या ब्लैडर पर ही कंट्रोल न रहना जैसे लक्षण शामिल हैं। बीपीएच 60 वर्ष से अधिक उम्र के तकरीबन 50 फ़ीसदी पुरुषों को और 70 वर्ष से अधिक उम्र के तकरीबन 80 फ़ीसदी पुरुषों को प्रभावित करता है।
साधारण तौर पर बीपीएच के लिए सर्जरी को विकल्प माना जाता है, लेकिन अब बहुत से कम जोखिम भरे इलाज भी उपलब्ध हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि 100 ग्राम से अधिक बढ़े प्रोस्टेट में सर्जरी के विकल्प की सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इसमें बहुत बड़ा जोखिम होता है, जबकि जेपी अस्पताल में 125 ग्राम बढ़े हुए प्रोस्टेट को प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन द्वारा ठीक किया गया जो कि एक असरदार और सुरक्षित इलाज के विकल्प के रूप में उभर रहा है। दरअसल प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन में प्रोस्टेट के बढ़े हुए आकार को सामान्य किया जाता है। इसके तहत प्रोस्टेट ग्लैंड के ब्लड वेसल्स को एन्जियोग्राफी तकनीक से ब्लाक किया जाता है। यह एक ऐसा तरीका है जिसमें एनेस्थीसिया तक की ज़रूरत नहीं होती और मरीज़ को इलाज के ठीक उसी दिन डिस्चार्ज किया जा सकता है। 
58 वर्षीय मरीज़ को जब जेपी अस्पताल लाया गया, तो उसका प्रोस्टेट का 125 ग्राम बढ़ा हुआ अकार था, जिसके कारण उसकी ब्लेडर ब्लॉक हो चुकी थी, जिसके लिए उनके पिछले इलाज के अंतर्गत कैथेटर डाली गई थी ताकि यूरिन पास हो सके।
डॉक्टर सी.पी.एस. चौहान, एडिशनल डायरेक्टर, रेडियोलोजी एंड इंटरवेंशनल रेडियोलोजी, जेपी अस्पताल नोएडा ने कहा कि, “मरीज़ की बीमारी की पूरी हिस्ट्री देखने के बाद कुछ टेस्ट किये गए और निर्णय लिया गया कि प्रोस्टेट के बढ़े अकार को कम करने के लिए नॉन सर्जीकल इलाज यानि प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन किया जाए, और ट्रीटमेंट के बाद मरीज़ को अस्पताल से छुट्टी भी उसी दिन दे दी गई। प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाइजेशन होने के 6 दिन बाद हम मरीज़ के यूरिनरी कैथेटर को भी निकालने में सफल रहे, अब वे एकदम सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।”
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि समाज में पुरुषों की कठोर छवि व्याप्त होने के चलते बहुत से तबकों में उनकी शारीरिक तकलीफों के प्रति संवेदनहीनता और भ्रांतियां फैली हुई हैं। सामाजिक दबाव के चलते बहुत से पुरुष अपनी ऐसी तमाम तकलीफों पर चुप रह जाने को मजबूर होते हैं। वक़्त की ज़रूरत है कि पुरुषों की भी तकलीफों के प्रति जागरुकता फैलाई जाए और ऐसी बीमारियों से लड़ने के लिए उनके बारे में खुलकर चर्चा की जाए। 


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