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झारखंड को मणिपुर नहीं बनने देंगे — कोकर में आदिवासी संघर्ष मोर्चा की बैठक में गूंजा संकल्प



“पेसा नहीं तो भूमि अधिग्रहण नहीं” के नारे के साथ शुरू हुआ 7 से 15 नवंबर तक का राज्यव्यापी अभियान


राँची :: “पेसा नहीं तो भूमि अधिग्रहण नहीं” के नारे के साथ आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने 7 नवंबर से 15 नवंबर तक चलने वाले राज्यव्यापी अभियान की शुरुआत के तहत रविवार को कोकर में एक बैठक आयोजित की। बैठक में बड़ी संख्या में ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता और मोर्चा के पदाधिकारी शामिल हुए। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि झारखंड की अस्मिता, पहचान और स्वशासन की रक्षा के लिए पेसा कानून को जमीनी स्तर पर लागू किया जाना अत्यंत आवश्यक है।


बैठक की अध्यक्षता सुशिला तिग्गा ने की। उन्होंने कहा कि “यह वर्ष ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है — हम भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती और झारखंड स्थापना की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। ऐसे समय में हमें आत्ममंथन करना होगा कि क्या हम सच में बिरसा के सपनों का झारखंड बना पाए हैं।”


उन्होंने आगे कहा कि भूमि अधिग्रहण से पहले ग्रामसभा की अनुमति अनिवार्य की जानी चाहिए और नौकरशाही हस्तक्षेप से मुक्त संशोधित पेसा कानून को राज्य में तत्काल लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “जब तक ग्रामसभा की स्वीकृति नहीं होगी, तब तक किसी भी भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया अवैध मानी जानी चाहिए।”


वहीं सुदामा खलखो ने कहा कि “संघ और भाजपा झारखंड में जातीय विभाजन कर कॉरपोरेट लूट को आसान बनाना चाहती हैं। यहां के प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हवाले करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन झारखंड के लोग ऐसा कभी नहीं होने देंगे। झारखंड को मणिपुर जैसी स्थिति में बदलने की साजिश सफल नहीं होगी।”


बैठक में वक्ताओं ने कहा कि बिरसा मुंडा ने जिस जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए बलिदान दिया, आज वही संसाधन बड़े उद्योगपतियों को सौंपे जा रहे हैं। यदि सरकार पेसा कानून को पूरी तरह लागू नहीं करती है, तो आने वाले दिनों में राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा।


बैठक में मुख्य रूप से सनी मुंडा, कुमारी मुंडा, सुनिता मुंडा, तारा मुंडा, सरोज बारला, सुनिता देवी, बुधु टोप्पो और रेणु टोप्पो सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।


अंत में सभी ने बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर उनके आदर्शों पर चलने और ग्रामसभा आधारित शासन व्यवस्था को सशक्त बनाने का संकल्प लिया।

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