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उत्तर भारत में 36 प्रतिशत मधुमेह मरीज इरेक्टाइल डिसफंशन से ग्रस्त

उत्तर भारत में 36 प्रतिशत मधुमेह रोगी "हाइपोगोनाडोट्रॉपिक हाइपोगोनाडिज्म नामक विशेष स्थिति से ग्रस्त हैं जिसके कारण लिंग में कड़ापन एवं फैलाव लाने वाले हार्मोनों का उत्सर्जन करने वाली सेक्स ग्रंथियों के उत्तेजित होने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। यह निष्कर्ष हाल में उत्तर भारत में किये गये अध्ययन से निकला है


इस अध्ययन के आधार पर रिसर्च सोसायटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबेटिस इन इंडिया (आरएसएसडीआई) का सुझाव है कि 40 साल से अधिक उम्र के हर मधुमेह मरीज की एडम स्कोर जांच होनी चाहियेइस अध्ययन के तहत 35 से 60 वर्ष की उम्र वाले 200 पुरुषों पर अध्ययन किया गया और पाया गया कि जो लोग मधुमेह से पीडित नहीं होते हैं उनकी तुलना में मधुमेह रोगियों में यौन हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बहुत कम होता है। टेस्टाटेरॉन वह रासायनिक पदार्थ है जो पुरुषों में यौन सक्रियता को बनाये रखता है और यह वीर्यकोष से उत्सर्जित होता है


यह अध्ययन आरएसएसडीआई की दिल्ली शाखा के अध्यक्ष एवं मधुमेह विशेषज्ञ एवं शोधकर्ता डा. राजीव चावला की निगरानी में हुआ. उन्होंने आज यहां आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि हमारा अनुमान है कि मध्यम वय के मधुमेह ग्रस्त 50 से 60 प्रतिशत लोग इरेक्टाइल डिसफंक्शन से ग्रस्त होते हैं। इरेक्टाइल डिसफंक्शन की स्थिति में यौन संबंध या यौन उत्तेजना के समय लिंग में कड़ापन नहीं आ पाता हैयह अध्ययन मधुमेह रोगियों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या का प्रकोप बहुत अधिक होने के अनुमान की पुष्टि करता है। ऐसे रोगियों के हार्मोन असंतुलन को ठीक करके उनके स्वस्थ्य यौन जीवन को दोबारा वापस लाया जा सकता है।


डा. चावला बताते हैं कि ऐसे रोगियों की एडम स्कोर जांच भी की जानी चाहिये ताकि "इरेक्टाइल डिसफंशन" के आरंभिक लक्षणों की पहचान हो सके और उनका शीघ्र इलाज शुरू हो सकेएडम स्कोर जांच प्रश्नावलियों पर आधारित जांच विधि है जिसके तहत मरीज को दस सवालों के जवाब देने होते हैं। यह निःशुल्क किंतु कारगर परीक्षण हैडा. चावला कहते हैं कि आमतौर पर लोग अपने यौन जीवन की बातों को बताने से हिचकते हैं ऐसे में इस परीक्षण के जरिये यह पता लगाया जा सकता है कि मरीज किस तरह की यौन दिक्कत से गुजर रहे हैं


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